एक जनसेवक को दुनिया में क्या चाहिए,चार छ: चमचे रहें माइक रहे माला रहे

मीडिया            Aug 12, 2019


अरशद अली।
मध्यप्रदेश में जब से कांग्रेस ने सत्ता संभाली है तब से लेकर आज तक मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनकी पार्टी के निशाने पर केवल मीडिया है। कमलनाथ के सत्ता संभालते ही मीडिया को अपराधियों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया गया है।

कभी-कभी तो कमलनाथ और उनकी पार्टी के नेताओं के बयानों से ऐसा लगता है जैसे मीडिया विशेषकर लघु एवं मध्यम समाचार पत्र - पत्रिकाएं और वेब मीडिया के खात्मे के लिए ही उन्हें राज्य की सत्ता मिली है।

अब सवाल ये उठता है कि आखिर कांग्रेस या कमलनाथ का मीडिया ने क्या बिगाड़ा है ? कांग्रेस को पंद्रह साल सत्ता से बाहर रखने का दोषी क्या कमलनाथ और उनकी पार्टी मीडिया को मानते हैं या आर्थिक और सांगठनिक तौर पर कमज़ोर होने के बाद भी मीडिया ने पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए उनकी बात पूरी ईमानदारी से जनता तक पहुंचा कर उनकी पार्टी का जो सहयोग किया उसका दोषी मीडिया को मानते हैं ?


या फिर इस लिए कि शिवराज सरकार से भरपूर विज्ञापन मिलने के बाद भी मीडिया ने सत्ता में बैठी भाजपा सरकार का साथ देने के बजाय विपरीत परिस्थितियों के बाद भी कांग्रेस नेताओं की बात को जनता तक पहुँचाया उसका दोषी मीडिया को मानते हैं ? या फिर बूढ़े हो चुके एक मुख्यमंत्री की सनक का खामियाज़ा मीडिया भुगत रहा है।

निश्चित ही उपरोक्त में से अंतिम कारण ही मुख्यमंत्री कमलनाथ की मीडिया से नाराज़गी का कारण है और वो है मुख्यमंत्री की सनक।

जहां तक मीडिया को सरकारी प्रदर्शन विज्ञापन देने की बात है तो मुख्यमंत्री को बताना चाहता हूं कि यह परंपरा भाजपा शासन में नहीं बल्कि कांग्रेस के शासनकाल में प्रारंभ हुयी थी। 1984 - 85 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने इसे शुरू किया था।

तब एक विपक्ष के नेता ने इसका विरोध किया था तो इसका जवाब देते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कहा था कि जितने रूपये का विज्ञापन हम लघु और मंझोले अख़बारों को देते हैं उतना तो एक सब इंजीनियर महीने भर में कमा लेता है।

विडंबना देखिये कि वही मीडिया आज के मुख्यमंत्री कमलनाथ की आंखों में खटक रहा है। मीडिया को विज्ञापन देने के लिए शिवराज सरकार को कमलनाथ पानी पी पीकर कोस रहे हैं। लेकिन सच यही है शिवराज सरकार ने खुले दिल से बिना किसी भेदभाव के मीडिया की आर्थिक मदद की है।

उस सरकारी विज्ञापन की मदद के कारण मीडिया से जुड़े हज़ारों लोगों को रोज़गार मिला हुआ था जो कमलनाथ के सत्ता में आने के बाद से संकट में है। कमलनाथ आर्थिक संकट का बहाना बना कर लघु और मंझोले मीडिया को मिटाना चाहते हैं।
और यह भी...

कमलनाथ शुद्ध रूप से व्यवसायिक हैं, वो हर बात में नफा-नुकसान देखते हैं,लघु और मंझोले मीडिया को लाभ पहुंचने से उनका क्या लाभ ,उन्होंने हमेशा हवा में राजनीति की है ज़मीन से कोई लेना - देना तो है नहीं, उनकी अंतिम अच्छा प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की थी सो बन गए, कांग्रेस जाए तेल लेने। जब तक मुख्यमंत्री हैं तो उनकी फोटो अम्बानी का चैनल दिखा ही देगा।
अदम गोंडवी कहते हैं...

आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे
अपने शाहे-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
एक जनसेवक को दुनिया में क्या चाहिए
चार छ: चमचे रहें माइक रहे माला रहे

लेखक तहलका पोस्ट के संपादक हैं।



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