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छेद से रुकावट के लिए खेद है तक वाले राहुल गांधी

राजनीति            Apr 23, 2019


प्रकाश भटनागर।
वह दूरदर्शन के देशव्यापी प्रसारण का आरम्भिक दौर था। प्रसारण में रह-रहकर तकनीकी खामी आ जाती थी। तब स्क्रीन पर लिखा आता, ‘रुकावट के लिए खेद है।’ उस समय का एक बच्चा याद आ गया। लगातार इस पंक्ति को पढ़कर उसने खीझने के अंदाज में कहा था, ‘रुकावट के लिए छेद है।’ वह बच्चा गोरा था। बहुत अच्छे परिवार से था। उसके तीखे नयन-नक्श थे।

इन दो गुणों के साथ-साथ राहुल गांधी से उसका एक और साम्य था। वह यह कि उसकी और गांधी की अकल का स्तर पूरी तरह एक था। अंतर केवल इतना कि खेद बनाम छेद वाली बात उसने नौ या दस साल की उम्र में कही थी और गांधी 48 साल की आयु में भी उस बच्चे के स्तर वाली अकल का ही प्रदर्शन कर रहे हैं।

राहुल ने राफेल मामले की निपट सिरफिरी व्याख्या में उलझने के बाद इस घटनाक्रम पर खेद जता दिया है। हमारी न्याय प्रणाली में कई ऐसे छेद मौजूद हैं, जिनके जरिए अनेक संगीन मामले भी खेद के जरिये निपटाये जा सकते हैं। यह मामला छेद से खेद तक का है।

राहुल की सोच सुराखदार है। कई बार लगता है कि उनके दिमाग और हृदय के बीच में वह बारीक छन्नी नहीं है, जो तोल-मोल कर बोलने की सीख देती है। बल्कि उनके शरीर के इन दो महत्वपूर्ण हिस्सों के बीच कोई बड़ा छेद मौजूद है।

दिमाग से निकली बात गाय के मलद्वार से निकले गोबर की तरह धप से उनके दिल में आकर छितर जाती है और फिर जुबां से बाहर निकल आती है।

वरना किसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का सदर ऐसी बेवकूफी का परिचय नहीं देता, जैसा राहुल के इस हालिया मामले में एक बार फिर सामने आया है।

जाहिर है कि खांटी या परम्परागत कांग्रेसी पाठकों को हमारी यह बात रास नहीं आयेगी। उनसे हम क्षमा चाहते हैं। लेकिन इस सबको तथ्यों के तराजू में रखकर तो देखिए।

आप पाएंगे कि एक ओर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसा वजनदार पद है और दूसरे पलड़े पर राहुल गांधी जैसा हल्का व्यक्त्वि आसीन है। मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या के पीछे संघ का हाथ बताकर यह जनाब पहले ही अदालती पचड़े में फंसे हुए हैं।

डोकलाम विवाद के बीच उन्होंने दिमागी दीवालियेन का परिचय देते हुए चीन के राजनयिक से मुलाकात कर ली थी। जिस कन्हैया कुमार गैंग ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश के टुकड़े-टुकड़े होने की बात कही थी, गांधी उनके ही पक्ष में जाकर धरने पर बैठ गये।

संसद में वह नयनों के बाण चलाते दिखे तो किसी आॅडियो टेप में कट्टर इस्लामिक कट्टरपंथियों के गुनाह हल्के करने की कोशिश करते सुनायी दे गये। जिस आदमी को किसी शोक संदेश को लिखने के लिए भी मोबाइल फोन के मैसेज की मदद लेना पड़े, जरा सोचिए कि उसकी समझ का स्तर क्या होगा।

कम से कम पूरी तरह स्थिर और स्वस्थ दिमाग वाला कोई शख्स तो राहुल गांधी जैसा हो नहीं सकता। यानी समस्या दिमाग की है, जिसका उपचार भगवान के पास भी शायद ही हो। क्योंकि यह 48 साल पुराना मर्ज दिखता है।

कोढ़ में खाज की तरह यह उस शख्स का मामला है, जिसे वंशवादी कारणों के चलते बड़ी संख्या में मौजूद कांग्रेसियों का समूह ‘भला है, बुरा है। जैसा भी है, मेरा अध्यक्ष मेरा देवता है’ की तर्ज पर ढोने के आनंद में मगन हैं।

यह राहुल के व्यक्तित्व की गलती हो सकती है। एक परिवार के नाम की अफीम के आदी हो चुके कांग्रेसियों की भूल हो सकती है, तो फिर इसकी सजा कांग्रेस को क्यों मिलना चाहिए? क्षमता के हिसाब से राहुल इतने ही समर्थ होते तो कोई वजह नहीं थी कि मायावती और अखिलेश यादव उनसे कन्नी काट लेते।

कोई कारण नहीं बनता था कि ममता बनर्जी, एन चंद्रबाबू नायडू, लालू प्रसाद यादव और यहां तक कि भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर रावण तक इस चुनाव में उन्हें घास नहीं डालते।


पुराने छेद से लेकर आज वाले खेद से राहुल गांधी को सबक लेना चाहिए। यह उनके लिए मोदी के विरोध में उन्मादी जैसा आचरण करने से बचने का समय है। उनके ऊपर देश के उस सबसे पुराने राजनीतिक दल का दारोमदार है, जिसके ऊपर वह खुद किसी बोझ की तरह काबिज ेहो गये हैं।

मोदी पर गुस्सा करने के चक्कर में कहीं उनकी हालत उस पंडित जैसी न हो जाए, जो शुद्ध शाकाहारी था। पड़ोस में रहने वाला मांसभक्षी पंडित से थाली मांगने आया। पंडित ने यह बर्तन इसी शर्त पर दिया कि पड़ोसी उसमें मांस नहीं खाएगा।

वह मान गया। कुछ देर बाद पंडित ने खिड़की से झांका तो पाया कि मांसभक्षी उनकी थाली में मटन खा रहा था। गुस्साए पंडित ने कहा, ‘नीच! तूने मेरी थाली में मांस खाया। ठहर! मैं तेरी थाली में गू रखकर खाऊंगा!’ यह भी दिमागी छेद वाला आचरण है, जिससे बचने के लिए गांधी को और न जाने कितने बार खेद जताने के लिए तैयार रहना होगा। क्योंकि अब सुधरने से तो वो रहे।

 



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