सुरेंद्रनाथ सिं​ह:इस सजा का गुनाह रोचक है

राज्य            Aug 26, 2019


प्रकाश भटनागर।


भोपाल पुलिस ने पूर्व विधायक और भाजपा नेता सुरेन्द्रनाथ सिंह के विरोध प्रदर्शन को लेकर जो फैसला किया है, उसे देख कर दो बातें मेरे दिमाग में आती हैं। या तो अफसर अकल के पूरे हैं या फिर मुख्यमंत्री कमलनाथ में इमरजेंसी के अंश अब तक बाकी रह गए।

मुझे संदेह हो रहा है कि आपातकाल के दौर में कमलनाथ ने अपने दोस्त संजय गांधी के कदम से कदम और कंधे से कंधा मिलाकर उस दौर के अमानवीय घटनाक्रमों में सक्रिय भूमिका निभायी होगी।

बोलने को गूंगापन, विचार को संज्ञाशून्यता तथा विरोध को भयाक्रांत में तब्दील करने वाली आततायी फौज के स्मृति फ्रेम में नाथ भी हंटर लहराते हुए निश्चित ही दिखे है।

मध्यप्रदेश में हुए एक अराजक घटनाक्रम ने बता दिया है कि आपातकाल चला गया, लेकिन उससे संबंधित फितरत आज भी नाथ के भीतर जिंदा है।

अराजक इसलिए कह रहा हूं कि लोकतंत्र की व्यवस्था में सिविल नाफरमानी अपराध नहीं हो सकती, हां, लोकतांत्रिक विरोध पर बेवकूफाना जुर्माना जिसमें पुलिस अपनी कीमत वसूलती नजर आ रही हो, यह अराजक राज होने का ही संकेत है।

भोपाल मध्य से पूर्व विधायक सुरेंद्रनाथ सिंह पर पुलिस ने 23 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव रखा है। यह उस आवाज को उठाने की सजा है, जिसे जनता की आवाज कहते हैं। वही स्वर, जिसकी दुहाई देते हुए राहुल गांधी आज कश्मीर का नजारा करने पहुंच गए थे, बावजूद इसके कि वहां के प्रशासन ने उन्हें आने की अनुमति नहीं दी।

वहां पुलिस का लाठीचार्ज हुआ, जो कानून व्यवस्था बनाने का एक हिस्सा है। कानून व्यवस्था के लिए वो यहां भी हो सकता था अगर किसी अशांति की आशंका हो। लेकिन यह तो नहीं हुआ, पुलिस ने कहा कि उसका रोजाना का काम प्रभावित हुआ है और उससे उसे जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई वो सुरेन्द्रनाथ सिंह से करने का इरादा रखती है।

यानि नागरिक प्रदर्शन को मध्यप्रदेश में भारी-भरकम अपराध की शक्ल दे दी गयी है। इस सजा का गुनाह रोचक है। दलील दी गयी कि सिंह द्वारा किये गये जन आंदोलन के दौरान कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने पर यह राशि खर्च हुई है।

सुरेन्द्रनाथ सिंह ने प्रदर्शन किया, बिना अनुमति के प्रदर्शन किया तो उसके लिए कानून में प्रावधान हैं। अदालत हैं। पुलिस ने अपराध पंजीबद्ध भी किए। अदालत ने जमानत दे दी। अब इसमें ये जुर्माना कहां से आ गया। मुुझे नहीं लगता कि इस भभकी से सुरेन्द्रनाथ सिंह जैसे नेता को काबू किया जा सकता है।

मुझे मामला कुछ और नजर आता है। समूचे प्रदेश में सुरेंद्र नाथ सिंह ही ऐसे भाजपाई है, जिन्होंने नाथ सरकार के गलत कदमों का विरोध करने के लिए किसी बात की परवाह नहीं की। वह उन नेताओं में शामिल नहीं हो रहे हैं, जो इस डर के कवच में छिपकर जन आंदोलन करते हैं कि उनका मुकाबला उस शासन से है, जिसकी मित्रता की उन्हें कभी न कभी आवश्यकता पड़ सकती है।

इसलिए सिंह की गर्जना और शेष भाजपाइयों की मिमियाहट के बीच का अंतर साफ महसूस किया जा सकता है। मिमियाने वालों से नाथ को डरने की कतई जरूरत नहीं है, किंतु गर्जन का प्रतिकार किया जाना जरूरी है। इसलिए जुमार्ने की आड़ में सिंह के दमन का षड़यंत्र रचा गया है।

सुर्रेन्द्रनाथ सिंह के राजनीतिक तौर तरीकों से प्रदेश भाजपा के कई नेता पहले भी असहज हो रहे थे, लिहाजा जाहिर है कि सरकार के इस फैसले का खुलकर विरोध नहीं ही होगा। सब कुछ उसी प्रतीकात्मक स्वरूप तक सिमट कर रह जाएगा, जैसा सिंह के अलावा बाकी नेता बीते साल दिसंबर के बाद से अब तक करते आ रहे हैं।

आखिर नाथ कैसी परम्परा स्थापित करना चाह रहे हैं? क्या इसके जरिये आवाम को संदेश दिया जा रहा है कि हुकूमत के खिलाफ आवाज उठायी तो कैसा बुरा अंजाम हो सकता है! पुलिस की दलील है कि सिंह ने आंदोलन से पहले इसकी अनुमति नहीं ली।

तो यह मान लिया जाए कि अब इस राज्य में सरकार का विरोध करने के लिए भी उसकी आज्ञा लेना होगी! प्रदेश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य यह कि यहां की वर्तमान सरकार वल्लभ भवन की कैदनुमा व्यवस्था में बंद होकर रह गयी है। मुख्यमंत्री को इसकी पांचवी मंजिल से नीचे यदि और कोई दुनिया दिखती है, तो वह या तो छिंदवाड़ा है या फिर दिल्ली दरबार।

इन तीन जगहों से बचा-खुचा समय यह चिंता करने में बीत जाता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कहीं कुछ दिक्कत न दे बैठें। फिर जो समय मिला, उसमें यह चिंता खाये जाती है कि कहीं दिग्विजय सिंह को कोई दिक्कत न हो जाए। इसमें जनता के लिए न तो कोई सारोकार बचता है और न ही समय।

इसलिए राहु-केतूनुमा दायें-बायें जो दिखाते हैं, बताते हैं, मुख्यमंत्री उसे ही परम सत्य मानकर संबंधित आदेश पर कलम चला देते हैं।

यदि ऐसा नहीं होता तो नाथ की नजर से यह तथ्य नहीं छिपता कि सिंह का आंदोलन विशुद्ध रूप से जनता की समस्या का प्रतिनिधित्व कर रहा था। ढेरों प्रबुद्ध लोगों की उससे असहमति हो सकती है पर यह उस तबके की आवाज थी, जिसे भोपाल की फिजा में सामुदायिक गणित के नये सूत्रों को बिठाने की गरज से बेरोजगार कर दिया गया है। मुख्यमंत्री यह बात समझ ही नहीं पा रहे हैं कि सत्ता पक्ष के ही कुछ लोगों द्वारा गुमठी कांड की आड़ में भोपाल में साम्प्रदायिक गठानें पनपाने का जतन कर रहे हैं, जो इस शहर की फिजा के लिए अंतत: कैंसर वाला मामला साबित होगा।

मुख्यमंत्री जी, कभी वल्लभ भवन या श्यामला हिल्स के वातानुकूलित ठिकानों से बाहर आकर राजधानी की आबो-हवा की सुध लीजिए। चाटुकार अफसरों और अपने घातक सियासी एजेंडे को लागू करने पर आमादा पार्टीजनों (इन में जन प्रतिनिधि भी शामिल हैं) की बातों से कान हटाकर इस शहर की धड़कन को सुनने का प्रयास कीजिए।

यकीन मानिए, जो कुछ दिखेगा और सुनायी देगा, वह आपकी नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त है। आप पायेंगे कि सुरेंद्र नाथ पर जुर्माना लगाना उस तानाशाही कदम का आरंभिक चरण है, जो आप और जनता के बीच की दूरी का फायदा उठाकर लागू करने के षड़यंत्र के तहत संचालित किया जा रह है।

यह साजिशें आपके ठीक अगल-बगल से ही संचालित हो रही हैं। जिनका ठीकरा अंतत: आपके सिर पर ही फूटेगा। जनता के हक के लिए किये गये जुर्म पर लगे इस जुर्माने को यदि आपकी स्वीकृति है तो फिर तय समझिए कि आपने प्रदेश में अपनी सरकार तथा पार्टी की कब्र खोदने का टेंडर जारी कर दिया है।

इस परम्परा को कांग्रेस या आप से ज्यादा बेहतर तरीके से फिर भाजपा अंजाम देने लगेगी। स्थापित रूप से आप उपनाम और पदनाम, दोनों तरीके से प्रदेश के नाथ हैं। किंतु यह मत भूलिये कि यहां की जनता भी अनाथ नहीं है। उसके लिए कोई सुरेन्द्र नाथ आखिर खड़ा हो ही गया न।

 



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