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स्त्री और पुरूष प्रकृति की दो पहेलियों को समर्पित

वामा            May 07, 2019


सत्येंद्र कुमार पांडे।
स्त्रियां क्या पहनें और क्या नहीं इसपर काफी बहस होती रहती है। आज तक यह तय ही नहीं हो पाया है कि स्त्री को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं। हालांकि ये नियम पुरुषों पर भी लागू होता है लेकिन पुरुष वर्ग शारीरिक शोषण को नहीं झेलता इसलिए यह बहस कमजोर रही है या यूं कहें कि नगण्य है।

आज मैंने सोचा कि इस विषय पर अपने विचार रखूं। एक बार स्त्री और पुरुष को सभी रिश्तों से मुक्त करके मात्र नर और मादा की दृष्टि से देखें। जब हम शिशु रूप में इस संसार मे आते हैं तब अधिक भेद नहीं होता सिवाय जननांगों की बनावट के। 10-11 वर्ष की आयु तक वाणी भी एक समान ही रहती है। इस आयु तक बालक बालिकाओ में लिंगभेद का सहज ज्ञान नहीं रहता न ही विपरीत लिंग के प्रति कोई विशेष आकर्षण ही होता है। लड़के लड़कियां बिना किसी भेदभाव के आपस मे खेलते कूदते रहते हैं।

12-13 की उम्र पर आते आते प्रकृति अपना काम करना शुरू कर देती है। हार्मोन के बदलाव आने लगते हैं। शरीर की बनावट जिसमे जननांगों का विकास और उनकी रासायनिक सक्रियता प्रारम्भ हो जाती है। स्त्रियों में मासिक धर्म का चक्र प्रारम्भ हो जाता है, स्तनों का विकास होने लगता है और वसा एकत्रित होने लगती है जिसकी वजह से जाँघे और नितंब भर जाते हैं। वहीं पुरुषों में लंबाई का बढ़ना और मांसल शरीर का विकास सहज रूप से होता है।

इस आयु में विपरीत लिंग के प्रति एक सहज आकर्षण उत्पन्न हो जाता है। हालांकि अधिकांश मामलों में यह आकर्षण गैर कामुक ही होता है जो धीरे धीरे कामुक हो जाता है।

18-20 की आयु में स्त्री और पुरुष दोनों का शरीर लगभग पूरी तरह से विकसित हो चुका होता है। प्राकृतिक रूप से दोनों ही प्रकृति का आदेश मानने को तैयार होते हैं बस आवश्यकता होती है एक सही साथी की जिसके साथ संभोग करके प्रकृति के हाथों में नई पीढ़ी को सौंप सकें और इस संसार के नियम का पालन हो सके।

आमतौर पर यही उम्र सबसे ऊर्जावान होती है। लोग इसे तरह तरह से परिभाषित करते रहे हैं। खैर उनबातों में न जाकर अपनी बात रखता हूँ।

हमारा मस्तिष्क सहज रूप से , स्वाभाविक रूप से प्रजनन करने हेतु एक योग्य नर या मादा की खोज करता रहता है। ये प्रक्रिया सतत चलती रहती है जिसके प्रति हम सजग नहीं होते हैं। ये योग्य नर या मादा की पहचान हमारी आदिम प्रवृत्ति है जो आज भी विद्यमान है और उसी तरीके से काम करती है जैसे पहले से करती रही है।

सुडौल, गठीला व मांसल शरीर , भारी आवाज़, चमकीले बाल , चमकदार त्वचा, ऊंचा कद एक अच्छे नर साथी की निशानी है उसी प्रकार से सामान्य कद, आनुपातिक शारीरिक गठन , तीखे नैन नख्श, चमकीले बाल, चमकीली व सौम्य त्वचा, विकसित स्तन, भरे हुए नितंब व जाँघे व कोमल स्वर एक योग्य मादा की पहचान हैं। इन लक्षणों के अलावा शारीरिक गंध व बौद्धिक योग्यता भी कारक है किंतु उसकी पहचान संपर्क में आने के बाद ही हो पाती है।

हमारी आंखें, कान, नाक, स्पर्श से ये सूचनाएं लगातार हमारे अवचेतन में जाकर हमारी सहज प्रवृत्ति के अनुसार हमें किसी के प्रति कम या ज्यादा आकर्षित करती रहती हैं। ये प्रक्रिया सामान्य रूप से आजीवन चलती रहती है जिसकी वजह से कोई हमें कम अच्छा लगता है तो कोई हद से ज्यादा।

हमारा अवचेतन मन यह जानता है कि योग्य नर या मादा का चयन करने हेतु खुद को भी तैयार करना पड़ता है इसलिए युवावस्था में खेल कूद, नाच गाना, शारीरिक श्रम व अधिक भोजन स्वाभाविक रूप से चलते रहते हैं ताकि शरीर स्वस्थ रहे और हम स्वयं आकर्षक बने रहें।

बुद्धि के विकास के साथ हमने कुछ और चीजें इसमे जोड़ दीं जैसे कि आकर्षक कपड़े, आभूषण, इत्र, सौंदर्य प्रसाधन आदि ताकि अधिक से अधिक आकर्षक लग सकें। ये सभी चीजें हमारे आत्मविश्वास पर भी असर डालती है क्योंकि अधिक आकर्षक बनने का प्रयास वही करता है जिसको लगता है कि उसके आकर्षण में कुछ कमीं है। इस गुण का किसी आयुसे कोई संबंध नहीं है।

अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर जहां सबको आपत्ति होती है। चूंकि मैं मुखर हूँ इसलिए आसानी से अपनी बात रखूंगा। एक पुरुष किस स्त्री में क्या देखता है और एक स्त्री किसी पुरुष को क्या दिखाना चाहती है उसी प्रकार एक स्त्री पुरुष में क्या देखना चाहती है और एक पुरुष किसी स्त्री को क्या दिखाना चाहता है।

एक पुरुष प्राकृतिक रूप से किसी स्त्री को एक स्वस्थ मां के रूप में देखना चाहता है जो अच्छे से एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सके और उसको अच्छे से पाल सके। इसके लिए वह सहज रूप से उस स्त्री के स्तन, नितंब और जांघें देखता है। विकसित स्तन का मतलब वह शिशु को अच्छे से स्तनपान करवा पाएगी, भरे हुए नितंब व जांघों का मतलब शरीर में संरक्षित भोजन है जो गर्भ में शिशु के विकास में काम आएगा। इसके अलावा स्वस्थ चमकदार त्वचा भी देखता है जो इस बात का प्रमाण होता है कि स्त्री पूर्ण रूप से स्वस्थ है और गर्भ धारण करने हेतु तैयार है।

एक स्त्री प्राकृतिक रूप से किसी पुरुष को एक पिता के रूप में देखती है जो शारीरिक रूप से प्रबल हो, कंधे, बाहें, छाती, जांघें मांसल व परिपक्व हों। अच्छी बनावट हो जो उसके मेहनतकश होने का प्रमाण हों। भारी आवाज़ अच्छे टेस्टेस्टेरोन स्तर का परिचायक है यानि उच्च गुणवत्ता का वीर्य होगा। और दोनो के परिणय से एक उन्नत किस्म का शिशु जन्म लेगा। साथ ही वह पुरुष शिशु को व माता को सुरक्षा प्रदान कर सकेगा।

चूंकि ये सहज प्रवृत्ति के गुण हैं अतः हम इन चीजों के लिए अक्सर सजग नहीं होते हैं।

अब आ जाते हैं पहनावे पर। चूंकि ऊपर मैंने बता दिया है कि स्त्री और पुरूष एक दूसरे में क्या देखते हैं इसलिए अपने आपको अधिक आकर्षक सिद्ध करने हेतु स्त्री और पुरूष दोनों ही ऐसे कपड़े पहनते हैं जिनसे उनके शरीर की बनावट अधिक से अधिक स्पष्ट रूप से पहचान में आ सके।

जिन अंगों को प्रमुख रूप से देखा जाता है वो अधिक से अधिक दिख सकें और उनका आकार प्रकार बेहतर से बेहतर दिखाई दे इसका प्रयास रहता है। पुरुष प्रयास करते हैं कि उनके बाल, त्वचा,सीना, बाहें व कंधे आकर्षण का केंद्र रहें जिसके लिए तरह तरह के प्रयास होते हैं। इसी प्रकार से स्त्रियां प्रयास करती हैं कि उनके बाल, त्वचा, स्तन, नितंब व जांघें आकर्षण का केंद्र रहें जिसके लिए वो तरह तरह के प्रयास करती हैं।

अब आप नज़र उठा कर देख लीजिए कि कौन क्या पहन रहा है। आभूषण व सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग भी होता है ताकि अधिक आकर्षक व स्वस्थ दिख सकें।

कामुकता का पहनावे पर मुझे कोई विशेष फर्क नहीं दिखता क्योंकि पूर्ण रूप से नग्न व्यक्ति भी कामवासना से मुक्त हो सकता है और सर से लेकर पैर तक ढके हुए लोग भी अति कामुक हो सकते हैं।

कुलमिलाकर हम चाहे जो कर लें। प्रकृति हमें समय पर जवान कर ही देती है और कितने भी नियम, कायदे, कानून बना लें वह हमसे बच्चे पैदा करवा ही लेती है ताकि सृष्टि का नियम न टूटे और वो अपना काम करती रहे।

इसलिए यदि आप को कोई लड़की या लड़का आकर्षक लगता है और आप उसे छुप—छुप कर देखते हैं तो अपने आप को अपराधी न समझें। संसार ऐसे ही चलता रहा है और ऐसे ही चलेगा। बस एक बात का ध्यान रखें कि सभ्य समाज में मर्यादाएं होती हैं, नियम होते हैं, कानून होते हैं, हर काम को करने की परंपरा और पद्धति होती है। समाज के अनुसार चलेंगे तो जीवन सरल सुखद और सहज रहेगा वरना जानवर बनने के लिए बस इंसानियत छोड़नी होती है।

स्त्री और पुरूष - प्रकृति की दो पहेलियों को समर्पित

 



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